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खबर पक्की है : इनका अटैचमेंट खत्म करके दिखाईये तो माने!

NW न्यूज का ये सप्ताहिक कॉलम है। इस कॉलम का उद्देश्य अंदर की खबर को आप तक पहुंचाना है। कर्मचारी, शिक्षक से जुड़ी वो खबरें जिससे आप सब अनजान हैं, पर्दे के पीछ चल रहा वो खेल जिससे आपको आगाह करना जरूरी है। अब सबकी पोल खुलेगी, सबकी सच्चाई सामने आयेगी।

-NW न्यूज टीम

इनका अटैचमेंट खत्म करके दिखाईये तो माने!

स्कूल शिक्षा विभाग स्कूलों में कार्यरत शिक्षक को हटाने के मुद्दे पर संजीदगी दिखा रहा है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या वास्तव में विभाग अटैचमेंट खत्म करना चाहता है क्योंकि यदि अटैचमेंट खत्म करना है तो सबसे पहले उन लोगों पर गाज गिरनी चाहिए जो अन्य विभागों में संलग्न है आज भी जिला पंचायत , राजस्व से लेकर अन्य कई विभागों में बैठे हुए हैं । कई विधायकों और मंत्रियों के निज सचिव भी शिक्षक ही हैं ऐसे में यदि वास्तव में सरकार और विभाग कार्रवाई करना चाहती है तो सबसे पहले खुद के घर से सफाई करनी होगी ऐसे भी लिपिक संघ गाहे-बगाहे यह मांग करता ही रहता है कि मंत्री और विधायकों के निजी सचिव लिपिक को बनाना चाहिए न कि शिक्षकों को, शिक्षकों का मूल काम स्कूल में पढ़ाना है और उनसे वही काम लिया जाना चाहिए , ऐसे में देखना होगा कि इस बार का अटैचमेंट निरस्त करने का आदेश सभी के लिए है या केवल कुछ लोगों के लिए ।

तो क्या अपने ही खोद रहे गड्ढा ?

बिलासपुर में शिक्षा विभाग की हलचले थमने का नाम नहीं ले रही है , वायरल ऑडियो से लेकर निजी स्कूलों में ऑनलाइन परीक्षा तक जितने भी कारनामे हो रहे हैं सारे के सारे बिलासपुर शिक्षा विभाग से ही जुड़े हुए हैं और जिस तेजी से सारी खबरें सबूतों और दस्तावेजों के साथ मीडिया और उच्च अधिकारियों तक पहुंच रहे हैं उसमें कहीं न कहीं एक की हार दूसरे की जीत वाला मामला ही निकल कर सामने आ रहा है । स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम का भी मामला कुछ ऐसा ही है पहले हिंदी माध्यम के शिक्षकों को दूरदराज से बिलासपुर लाने का मामला दस्तावेजों के साथ सामने आया तो अब स्वामी आत्मानंद में छात्रों के प्रवेश का…. सारे मामले में आपसी दुश्मनी का एंगल ही निकल कर सामने आ रहा है। स्थिति ऐसी बन चुकी है कि चाहे पत्रकार हो या उच्च अधिकारी जिन्हें भी थोड़ा सा क्लू चाहिए हो उनके लिए सारा पोथी पुरान लेकर कुछ अधिकारी कर्मचारी तैयार बैठे हैं ।

मजबूरी का साथ, आधा अधूरा आत्मविश्वास !

सहायक शिक्षक फेडरेशन प्रदेश का आज सबसे बड़ा संगठन बन चुका है ताकत ऐसी कि कोई भी इनसे दूरी नहीं बनाना चाहता यही वजह है कि मनीष मिश्रा के निलंबन पर उन संगठनों के भी प्रांत अध्यक्ष ने एकता के कसीदे गढ़ दिए जिन्होंने मनीष मिश्रा के हड़ताल को बर्बाद करने और उनकी छवि को व्यक्तिगत रुप से धूमिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी फिर चाहे मीडिया को सबूत सहित आरोप भेजने का मामला हो या फिर खुलकर सोशल मीडिया पर आरोप लगाने का…. लेकिन 18 दिनों के हड़ताल ने मनीष मिश्रा की ताकत को कई गुना बढ़ा दिया है और यही वजह है कि वह नेता जी भी कसीदे गढ़ते नजर आए जिन्होंने मनीष मिश्रा को सटोरिया से लेकर कई प्रकार के उपमाओ से खुद नवाजा था । इधर अंदर खाने यह खबर है कि जिस तरीके से मनीष मिश्रा की 1 सप्ताह के अंदर ही बहाली हो गई उससे कुछ लोगों को 440 वोल्ट का करंट लगा है ।

खेल ज्ञापन का, प्रचार प्रसार विज्ञापन का

चाहे प्रमोशन का मुद्दा हो या अन्य , शिक्षाकर्मी नेता से शिक्षक नेता बन चुके कुछ नेताओं का ज्ञापन मोह अभी तक नहीं छूटा है , हर दूसरे दिन किसी न किसी मुद्दे पर हमने ज्ञापन दिया है कहकर प्रेस विज्ञप्ति जारी कर देना वाले मुद्दे पर जब स्तंभकार ने एक बड़े अधिकारी से नाम न छापने की शर्त पर पूछा तो उन्होंने बताया की व्हाट्सएप पर हर दूसरे तीसरे दिन कोई ज्ञापन आ जाता है अब कितने पर ध्यान दें और मुद्दा भी ऐसा रहता है कि ज्ञापन देने वाला देकर भूल जाता है न कोई फॉलोअप, न कोई सरोकार । इसलिए विभाग अपने हिसाब से काम करता है अब जिसे श्रेय लेना है वह लेते रहे , हमें उससे कोई परेशानी नहीं है । ऐसे स्तंभकार की माने तो शिक्षक नेताओ की रणनीति भी सटीक है भले ही अपने ही लोगों को ठगने वाली क्यों न हो , जैसे ही शासन प्रशासन की ओर से कोई भी आदेश शिक्षक हित में निकलता है तो उसके आधे घंटे बाद शिक्षक नेता प्रेस विज्ञप्ति जारी कर देते हैं वही अपने पुराने ज्ञापन को लहराते हुए कि हमारे प्रयास से यह सफलता मिली । किसी ने हैरान होकर सोशल मीडिया पर लिखा भी था ” ऐसा लगता है मानो यह शिक्षक नेता न होते तो हम अभी तक हड़प्पा काल में ही होते ”

पेंशन की राह हुई आसान, अब श्रेय लेने को मचेगा घमासान

राजस्थान , मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक साथ चुनाव होने हैं और छत्तीसगढ़ और राजस्थान दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार है ऐसे में राजनीतिक मामलों के जानकारों का कहना है कि चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ के भी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन की सौगात मिलने की पूरी संभावना है । ऐसे भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री निर्णय लेने के मामले में आगे ही नजर आते हैं क्योंकि राजस्थान में अभी ही निर्णय हुआ है इसलिए थोड़ा रुक कर छत्तीसगढ़ में भी निर्णय हो सकता है । ऐसे भी राज्य में जिसकी अभी सरकार है उस पर तत्काल पुरानी पेंशन का बहुत पड़ना भी नहीं है , यह बोझ आने वाले 15-20 साल के बाद वाली सरकार पर ज्यादा पड़ेगा , उल्टा तत्काल में वित्तीय बोझ कम होगा ऐसे में सरकार इस पर निर्णय ले सकती है। इधर प्रदेश में जितने भी संगठन हैं उन्होंने भी पुरानी पेंशन का श्रेय लेने के लिए कमर कस ली है ताकि जैसे ही घोषणा हो सके इस बात का ढिंढोरा पीट सके कि हमने पुरानी पेंशन दिलाया । इसको देखते हुए कई नेताओं ने अपने साथियों को निर्देशित भी कर दिया है की एक-एक ज्ञापन और फोटो संभाल कर रखें , सोशल मीडिया पर इसे लहराने का जल्द ही मौका मिलेगा ।

नोट- आपके पास भी कोई अंदर की खबर है, तो हमें जरूर साक्ष्य के साथ बतायें। हम अपने इस कॉलम में उनकी सच्चाई उजागर करेंगे

ये जवाब जरूरी है 

  • 1. क्या १० मार्च को न्यायालय से पदोन्नति की राह देख रहे शिक्षकों को राहत मिल पाएगी या फिर प्रमोशन का हाल भी नई भर्ती जैसा हो जाएगा ??
  • 2. क्या वायरल ऑडियो कांड में तार ऊपर तक जुड़ पाएंगे या छोटी मछलियों को शिकार बनाकर ही वाहवाही लूटी जाएगी ??

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