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प्रथम नियुक्ति से पेंशन गणना के लिए अब कोर्ट का सहारा : बिलासपुर की बैठक में कानूनी पहलुओं पर हुई राय सुमारी, वरिष्ठ अधिवक्ताओं से हुई चर्चा… पेंशन नियम 1976 के तहत OPS का लाभ देने की मांग

बिलासपुर 27 मार्च 2023। छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष देवनाथ साहू, बालोद जिलाध्यक्ष दिलीप साहू, दुर्ग जिलाध्यक्ष शत्रुघ्न साहू के नेतृत्व में पदाधिकारी बिलासपुर पहुँचे,,तथा प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा व प्रदेश उपाध्यक्ष बसंत चतुर्वेदी के साथ मुलाकत करके पुरानी पेंशन योजना में 1998 से लगातार नियुक्त शिक्षा कर्मियों को पेंशन के यथोचित लाभ के सम्बंध में आगामी रणनीति पर विस्तार से चर्चा की।

सभी पदाधिकारियों ने शासन द्वारा लागू पेंशन योजना के सभी पहलुओं पर अपना अपना राय व्यक्त करते हुए 1998 से लगातार नियुक्त शिक्षा कर्मियों को 2018 से पेंशन गणना होने से होने वाले नुकसान पर गंभीर चिंतन किया गया

विभिन्न न्यायालयीन निर्णयों के आधार पर कानूनी पहलुओं पर चर्चा किया गया जिसमें 👇
जब कार्यभारित स्थापना में 2004 के बाद नियमित हुए दैनिक वेतन भोगी शासकीय सेवको को छत्तीसगढ़ सिविल सेवा पेंशन नियम 1979 के अंतर्गत पेंशन भुगतान का आदेश माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर किया गया है। तो 2004 के पूर्व नियुक्त व 2018 में संविलियन हुए शिक्षकों को पेंशन नियम 1976 के तहत पुरानी पेंशन की पात्रता से वंचित नही किया जा सकता।

शिक्षा कर्मी के पद पर 1998 से नियुक्त एल बी संवर्ग के शिक्षकों ने पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर विधिवत सभी तथ्यों के साथ शासन को पहले आवेदन देने के बाद माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर किया है।

पेंशन नियम 1976 के तहत 2004 के पूर्व नियुक्त कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ दिए जाने का तथ्य व तर्क रखते हुए NPS योजना को उपयुक्त नही मानते हुए याचिका दायर की गई है।

ज्ञात हो कि नवीन अंशदायी पेंशन योजना छत्तीसगढ़ में नवंबर 2004 के बाद नियुक्त कर्मचारियों के लिए लागू किया गया है, जबकि वर्तमान एल बी संवर्ग के शिक्षक जिनकी नियुक्ति 2004 के पूर्व 1998 में शिक्षा कर्मी के पद पर ब्याख्याता, शिक्षक व सहायक शिक्षक के रिक्त पेंशन भोगी पद के विरुद्ध हुई थी वे पेंशन नियम 1976 के तहत पुरानी पेंशन के पात्र होंगे।

जब 8 वर्ष की सेवा पर संविलियन किया गया मतलब शासन ने स्वयं पूर्व सेवा को ही संविलियन के लिए आधार बनाया तो पेंशन के लिए पुरानी सेवा को अमान्य किया ही नही जा सकता।

जब स्वयं शासन निम्न से उच्च पद का लाभ देने आदेश कर चुकी है तो पुरानी सेवा को अमान्य किया ही नही जा सकता।

दैनिक वेतन भोगी के मामले में भी निर्णय को आधार बनाया गया है, ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ शासन वित्त विभाग द्वारा आदेश क्रमांक 79, दिनांक 28 /02/2018 को जारी आदेश में 1 /11/2004 के पश्चात कार्यभारित स्थापना में नियमित हुए शासकीय सेवको को छत्तीसगढ़ सिविल सेवा पेंशन नियम 1979 के अंतर्गत पेंशन भुगतान का आदेश किया गया है।

जब 1998 के प्रथम नियुक्ति के आधार पर समतुल्य दिया गया, और समतुल्य वेतन के आधार पर सातवां वेतनमान दिया गया तो 1998 के आधार को मान्य किया जाना युक्ति युक्त संगत है।

मध्यप्रदेश स्थानीय प्राधिकरण पाठशाला अध्यापक, शासकीय सेवा में संविलियन 1963 एवं 1964 के तहत स्थानीय निकाय के अंतर्गत की गई सेवा को संविलियन पश्चात पेंशन योग्य सेवा मान्य करने का आदेश जारी किया जावे।

छत्तीसगढ़ शासन द्वारा स्थानीय निकाय के शिक्षकों अर्थात शिक्षा कर्मियों का संविलियन जुलाई 2018, 2019 ,2020 व 2021 में किया गया है, संविलियन पूर्व की स्थानीय निकाय के अंतर्गत पंचायत या नगरीय निकाय की सेवा को पेंशन योग्य सेवा मान्य किए जाने का पक्ष रखा गया है।

माननीय उच्च न्यायालय में दायर याचिका में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा पक्ष रखा गया है 👇
“decisions of the Supreme Court in the case of Karnataka Power Corpn . Ltd. Through its Chairman & Managing Director v . K. Thangappan , ( 2006 ) 4 SCC 322 , Shiba Shankar Mohapatra v . State of Orissa , ( 2010 ) 12 SCC 471 , State of Jammu and Kashmir v . R. K. Zalpuri , ( 2015 ) 15 SCC 602” 【का हवाला देते हुए शासन ने विलंब से याचिका लगाने का पक्ष रखा है।】

साथ ही शासन ने पक्ष रखा है जिसमें 👇

That the Hon’ble Division Bench of this Hon’ble Court in Writ Appeal No. 215/2017, Harnarayan Yadav VS. Chhattisgarh, PSC and Others have passed the order and held that the Shiksha Karmi/Teacher Panchayat are not a government employee and they are not holding any civil post therefore they cannot claim equal to the government servant or government employee because their appointment is under the MP/CG Panchayat Shiksha Karmi Recruitment Rules, 1997. Therefore the petitioners are not entitled for pensionary benefits as per the old Scheme prior to 01/11/2004 equivalent to the other employee of the department of the Panchayat those are government employees appointed prior to 2004 and they cannot be treated at par with other employees who were not appointed under the Rules, 1997 with the concerned Janpad Panchayat therefore they are not entitled for pension and GPF.

【माननीय न्यायालय की माननीय खंडपीठ द्वारा रिट अपील संख्या 215/2017 में हरनारायण यादव वी.एस. छत्तीसगढ़, पीएससी और अन्य ने आदेश पारित किया है और कहा है कि शिक्षा कर्मी / शिक्षक पंचायत सरकारी कर्मचारी नहीं हैं और उनके पास कोई सिविल पद नहीं है इसलिए वे सरकारी कर्मचारी या सरकारी कर्मचारी के बराबर का दावा नहीं कर सकते क्योंकि उनकी नियुक्ति मप्र के अधीन है /सीजी पंचायत शिक्षा कर्मी भर्ती नियम, 1997 इसलिए याचिकाकर्ता 01/11/2004 से पहले की पुरानी योजना के अनुसार पंचायत के विभाग के अन्य कर्मचारी के समान पेंशन लाभ के हकदार नहीं हैं जो 2004 से पहले नियुक्त सरकारी कर्मचारी हैं। और उन्हें अन्य कर्मचारियों के समान नहीं माना जा सकता है, जिन्हें संबंधित जनपद पंचायत के नियम, 1997 के तहत नियुक्त नहीं किया गया था, इसलिए वे पेंशन और जीपीएफ के हकदार नहीं हैं।】

1998 से लगातार नियुक्त शिक्षा कर्मियों द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट के प्रेम सिंह के मामले में निर्णय को प्रमुख आधार बनाया जा रहा है प्रेम सिंह के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि “The work charged establishment shail be counted as qualifing service for purpose of pension”

“Service of work-charged period remains the same for all the employees, once it is to be counted for one class, it has to be counted for all to prevent discrimination. The classification cannot be done on the irrational basis and when respondents are themselves counting period spent in such service, it would be highly discriminatory not to count the service on the basis of flimsy classification”
(कार्य-प्रभारित अवधि की सेवा सभी कर्मचारियों के लिए समान रहती है, एक बार जब इसे एक वर्ग के लिए गिना जाना है, तो भेदभाव को रोकने के लिए इसे सभी के लिए गिना जाना चाहिए। वर्गीकरण अतार्किक आधार पर नहीं किया जा सकता है और जब उत्तरदाता स्वयं ऐसी सेवा में बिताई गई अवधि की गणना कर रहे हों, तो यह बेहद भेदभावपूर्ण होगा कि सेवा को कमजोर वर्गीकरण के आधार पर नहीं गिना जाए।)

सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि कार्य-प्रभारित प्रतिष्ठान में प्रदान की गई सेवाओं को पेंशन प्रदान करने के लिए अर्हक सेवा के रूप में माना जाना चाहिए। जस्टिस अरुण मिश्रा, अब्दुल नज़ीर और एमआर शाह की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ कर्मचारियों द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार करते हुए फैसला सुनाया है।

प्रेम सिंह, व सुकुमारन के सुप्रीम कोर्ट व कमालुद्दीन सहित कुछ अन्य हाई कोर्ट के निर्णयों का अध्ययन किया गया।

1998 में नियुक्त शिक्षा कर्मियों को पेंशन गणना में लाभ मिलने पर 1998 के बाद लगतार नियुक्त शिक्षा कर्मियों को भी लाभ प्राप्त होगा।

चर्चा के दौरान छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा व प्रदेश उपाध्यक्ष देवनाथ साहू, प्रदेश उपाध्यक्ष बसंत चतुर्वेदी, बालोद जिलाध्यक्ष दिलीप साहू, दुर्ग जिलाध्यक्ष शत्रुहन साहू

धमतरी जिला से देवनाथ साहू,मेघनाथ साहू, रविशंकर साहू,योगेंद्र साहू, संतोष कुमार साहू, रामबगस गंगबेर ,राजेन्द्र यादव, भगवती प्रसाद सोनी

बालोद जिला से दिलीप साहू जिलाध्यक्ष, जिला उपाध्यक्ष वीरेंद्र देवांगन, शिव शांडिल्य, जिला कोषाध्यक्ष पवन कुम्भकार, केशव साहू महासचिव ब्लॉक गुरुर

दुर्ग जिले से आज शामिल होने वाले साथी जिलाध्यक्ष शत्रुहन साहू, जयंत यादव, घनश्याम देवांगन,मदन साटकर, वीरेन्द्र साहू, राजेन्द्र साहू,माधव चेलक,संजय शर्मा,मनोहर गौतम शामिल थे।

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